ब्यास नदी, मनाली के पास 2017
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नन्हा सा, छोटा सा
पानी का बस एक टुकड़ा सा
मैं निकला
उन तंग, पथरीले रास्तों से
लहराता, हिचकोले खाता
बस चलता ही चला जाता था
दिशा और गति में
कोई अंतर ही ना पाता था
क्यूँकि क्रीड़ा के आनंद में
मैं सिर्फ भागना ही चाहता था |
जैसे जैसे आगे बढ़ा
बड़े-बड़े पहाड़ों में
अक्सर गुम भी जाता था
और जैसे ही कोई ढ़लान पाता था
तो तेरी डोर कस के पकड़ के
और तेज़ भागने लग जाता था
पर मुझे ना पता था
मैं तो तेरी डोर खींचता
और दूर ले जाता था |
अब इतना आगे आ गया
कि मुड़ने का कोई अवसर भी ना पाता था
बस आगे बढ़ते-बढ़ते
तेरे ही दिखाए रास्तों से निकलता जाता था
अनगिनत नदियों और नालों से क्या मिला
कि कभी अपना रंग तो
कभी अस्ततित्व बदलता जाता था
और अपने बढ़ते आकार में
मैं अक्सर अपनी पहचान ढूंढ़ता जाता था |
अब धीमे-धीमे धीमा हुआ
बाहर का उफान थोड़ा कम क्या हुआ
अंदर तो मानो जैसे एक तूफ़ान हुआ
जीवन के अविरल सवालों के घेरे में
मेरे मन का पंछी बेहद अशांत हुआ
और इस शांत सी अशांति में ही
मुझे अंतरमन
तेरा भीना सा आभास हुआ |
पहले तो सब नया-नया सा था
पर अब सब कुछ इक सार हुआ
और चलते चलते ना जाने कब
आगे सागर का एहसास हुआ
जीवन के इस पड़ाव पे
तेरी चिंताओं और संघर्षों का
अब थोड़ा सा ज्ञान हुआ
मन तो डूबता अपने ही जल में
पर फिर से तेरी ममता का हाथ हुआ
मैं तेरा ही हूँ अंश माँ
अब मुझे यह अटल विश्वास हुआ |
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