आते जाते मिल जाते
बस कुछ पलों के जरिये
जीवन का इक हिस्सा बन जाते
कुछ याद बन जाते, कुछ किस्से, और कुछ एहसास
पर होते सब हमारे|
पर आप जब भी आते,
या तो पराये लगते, या अजनबी
आते समय तो दिखते नहीं, पर जाते बहुत कुछ दिखा कर के
गले तो मिलते नहीं, बस गले पड़ जाते
क्यों हैं ऐसे आप?
मैं तो
ऐसा ही हूँ|
जैसा
दिखता हूँ, वैसा हूँ
माना
थोड़ा खरा हूँ और थोड़ा खोटा
पर तुम
ऐसे कैसे हो? मूर्ख हो क्या?
भाग्य
और दुर्भाग्य में अंतर ही क्यों समझते हो?
अजी आप भी कमाल करते हैं
कर्म करूँ तो फल क्यों न खाऊँ?
सफलता पे अपना अधिकार क्यों ना
जताऊँ?
भाग्य को सौभाग्य तो हम ही बनाते
हैं?
ऐसे ही थोड़ी अपनी समस्याओं पे
विजय पा जाते हैं!
हाँ, बातें तो तुम कर ही लेते हो
सौभाग्य
को अपनी सफलता कहते हो
और दुर्भाग्य
को परिस्थिति
पर ये
भी तो बताओ कि सफलता के लिए तुम ऐसा क्या करते हो?
कुछ नया, कुछ अलग करते हो?
जी आप मुझे अपने प्रश्नों में
घुमा रहें हैं, उलझा रहे हैं|
पर आपकी बातों में मैं यूँ ना
आता
क्योंकि मुझे तो सिर्फ कर्म करना
आता
परंतु आपके संग जब भी यह दुष्ट
दुर्भाग्य आता
तो कर्म के सभी अवसर क्यों खा
जाता?
मैं भला
किसी को क्यों उलझाता!
जो हो
चुका उसे स्पष्ट दर्शाता
परन्तु
तुम्हारी सोच भी निराली है
कर्म
करने के लिए तो निष्ठा चाहिए, अवसर नहीं|
फिर भी, क्या सभी क्षण एक अवसर नहीं?
अब और
प्रश्न मत पूछो, बस सुनो
मेरा
कर्म है तुमसे मिलना
कभी अतीत
पे चिंतन करवाना, कभी नए रास्ते
दिखाना|
और मैं
तो यूँही आता रहूँगा,
अपना
धर्म निभाता रहूँगा
चलो, समय हुआ समाप्त, मुझे अब चलना होगा
कोई राह
देख रहा है, उससे मिलना होगा
अब अगली
भेंट में ताज़ा चाय मिलेगी या सिर्फ रूखे सवाल
ये तो
मेरा भाग्य ही जाने
पर मैं
जानता हूँ मेरे भाग्य में है चलना, मैं चलता रहूँगा |
1 comment:
Simple and relevant!
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